बचपन
मोबाइल में उलझा हुआ बचपन गांव की गलियों को याद नहीं करता अकेले रहना पसंद करते हैं आजकल उन बूढी
Read Moreउस घर से आये दिन सास बहू के जोर जोर से झगड़ने की आवाजें आती थी । बहू अपनी मां
Read Moreदीप बहुत-से जला चुकी हूं, हुआ न दूर अंधेरा, जीवन बीत रहा है निशिदिन, करके तेरा-मेरा। कृपादृष्टि जब हो तेरी
Read Moreजिस घर में हो फूट का डेरा, समझो उसे दुःखों ने घेरा, वहां घड़ों का सूखे पानी, सुख करते वहां
Read Moreमुगलों के टुकडो पर पलने वाले और उनके दरबार में अच्छा अच्छा ओहदा और रूतबा पाए मानसिंह , जयचंद !
Read Moreलोकतंत्र में लोक और तंत्र के बीच में गहरी खाई पनपती जा रही है। लोकतंत्र के सारथी धनपति बनते जा
Read More‘‘ तुम सुधीर भैया से बात क्यूं नहीं करते हो विनय, मैं तो तंग आ चुकी हूं सविता भाभी के
Read Moreकल रात देर तक जागा था तो सुबह औंधी आँखों से एक ख़ूबसूरत सपना देखे! देखे की, आप हमको जगा रही हो!
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