जीवन
जीवन ,नदी की धारा सम। बढ़ती जाये पल-पल हरदम।। मिले जो राह में कुछ भी उसे । समेटते चलती जाये
Read Moreऊंचे-ऊंचे पर्वत की गोद से निकलता भुवन भास्कर सुनहरी उर्मियां छिटका कर बर्फीली पहाड़ों पर ऐसे चमकतीं,जैसे चांदी की चादर
Read Moreमेरे बालों के बीच एक रक्ताभ रेखा खींची है सिंदूर की,प्रतीक है मेरे ब्याहता होने की कहीं मंगलसूत्र पहना कर
Read Moreछोड़ चुका था जिस घर को वर्षौं बाद पुरखों के घर का दर्शन को आया छत्रछाया में जिसके पले बढ़े
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