जीवन की सहजवृत्तियाँ
अभी-अभी पौधे और घास सींचकर बरामदे के तखत पर मैं बैठा हूँ…जानता हूँ, इन्हें छोड़कर अब जाने वाला हूँ…लेकिन इन्हें
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Read Moreअध्याय 3 : विपुल बाहर टहलते-टहलते उसे मालती की याद आई मगर वह उस गली में किसी कीमत पर नहीं
Read Moreपुत्रमोह ही तो था कि बेटे की लालच में किशोरीलाल ने दुबारा शादी करने का फैसला लिया था । उसकी
Read More‘चल ओए जग्गेया ! गड्डी से उतरकर पिछले टायरों में पत्थर लगा दे ! मैं जरा हल्का होकर आता हूं’
Read Moreआरती अपने माँ – बाप की इकलोती बेटी थी , वह दिल्ली में करोल – बाग में एक बड़े से
Read Moreरेखा और मनीषा बचपन की दोस्त थी ! रेखा मनीषा से सुन्दर थी , रेशमी काले बाल , जो काफी
Read Moreउम्र के आठवें दशक में खड़ी रामकली, आँखें फाड़े अपने प्रौढ़ पुत्र को देख रही थी। वह सोच रही थी,
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