प्रीत की रीत
प्रीत की रीत कहाँ निभाते हो? प्रीत के ना पर पीठ में छुरा घोंपनें में भी न शर्माते हो। प्रीत
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Read Moreअब ऐसे माहौल में क्या लिखें डर लगता है, अपने आप से इस समाज से समाज के लोगों से हर
Read Moreदर्द को शब्द में ढालकर आई हूं, बैठकर रोना मुझको गवारा नही। पीर के मेघ पलकों में छाए मगर, अश्रुमोती
Read Moreमानव ने चाहा मंदिर बने, मस्जिद बने, गिरजाघर बने गुरुद्वारा बने आदी, आस्था और विश्वास का केंद्र है सभी, अच्छी
Read Moreआ ज़िन्दगी बैठ थोड़ा बात करते हैं मानस-पटल में सुबिचारो का सागर भर हृदय-कमल में अमर ज्योति जलाते हैं आज
Read Moreसदियों से चला ये सिलसिला है कहते हैं इश्क इक जलजला है खूब जला और खूब जलाया भी कौन क्या
Read Moreहां! सिमटा है मुझमें भी… इक सागर। जो रह कर मौन करता है समाहित खुद में,,, अनगिनत … तर्कों-
Read Moreआज संकुचित ज्ञान के घेरे में अवरुद्ध जीवन का विकास पड़ा है कुत्सित सोच के फेरे में! जीवन का
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