सबल
किसी सीमा को जब कोई, तोड़ जाता है। उसी वक्त भय का, उदय हो जाता है। यही भय द्वेष को
Read Moreतिमिर भरें जग में छा गई अमावश काली। तरू विगलित हुएं सूखें पत्तें सूखी डाली।। “प्रिय” कैसे रूठे तुम? भीगी
Read Moreजबसे तुझ पर आ गया है मेरा मन वियोग में मेरी रूह हो गयी है आवारा मेरा मन हो
Read Moreनये दौर के इस युग में, सब कुछ उल्टा दिखता है, महँगी रोटी सस्ता मानव, गली गली में बिकता है।
Read Moreमन की हल्दीघाटी में राणा के भाले डोले हैं, यूँ लगता है चीख चीख कर वीर शिवाजी बोले हैं, पुरखों
Read Moreमौसम बार बार ले रहा है, बेमौसम की करवट, रंग बदलने में मार खा रहा है बेचारा गिरगिट, कभी
Read Moreगुरु ज्ञान के सागर होते, शिष्य धरातल की एक बूँद आप हैं कुम्भकार गुरुवर मैं हूँ माटी का एक कुम्भ मैं
Read Moreवक्त ने बिछायी है कुछ ऐसी बिसात , अपने ही तो कर रहे हैं अपनों पर वार !! भावनाओं का
Read Moreना मुस्लिम ना हिंदु, इंसान लिखता हूँ, सदा कलम से अपनी हिंदुस्तान लिखता हूँ…! जात-पात क्या है, राग-द्वेष क्या है,
Read Moreआसमान को देखकर , बेटी भरे उड़ान माँ के दिल में हो रही , आशंका बलवान ।। रिझा रहा हिय
Read More