छंदमुक्त कविता
यामिनी की इस प्रहरी में तुम्हारा अहसास महसूस हो रहा है। जैसे धीरे- धीरे चाँद ढल रहा है ।। कुछ
Read Moreयामिनी की इस प्रहरी में तुम्हारा अहसास महसूस हो रहा है। जैसे धीरे- धीरे चाँद ढल रहा है ।। कुछ
Read Moreऊपर वह ही चढ़ पाता है, समय-समय जो झुकता है। चरैवेति सृष्टि की चाल है, समय कभी ना रुकता है।।
Read Moreअपनी पत्नी को प्रेम नहीं बल्कि ‘वासना’ के नजरिये से देखते हैं, क्योंकि अगर आपमें हिम्मत है, तो उनकी देह
Read More(हरिगीतिका छंद) तिथि दूज शुक्ला मास कार्तिक, मग्न बहनें चाव से। भाई बहन का पर्व प्यारा, वे मनायें भाव से।
Read More(निधि छंद) उनका दे साथ। जो लोग अनाथ।। ले विपदा माथ। थामो तुम हाथ।। दुखियों के कष्ट। कर दो तुम
Read Moreतू मेरी जान जानू मैं तेरा वर मैं तो हु पगली तेरा जानवर शादी के बाद बन गया जोकर सब
Read Moreये सिवाय गलतफहमी के और कुछ नहीं है, सिर्फ तुम्हारे मन का फितूर है, तुम्हारा अहम भाव है। माना कि
Read Moreकहाँ गए वो दिन जब लोग नींबू, प्याज, हरी मिर्च को काला धागे से पिरोकर घर के आगे, गाड़ी के
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