गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खिला जब फूल चम्पा चमन चाहत के नजारो में कि जैसे एक नया कोपल निराला बन बहारो में| मिले जब ताजगी आती महक भी मन लुभाती सी चला लेकर सुनाने को मग्न मन भी निहारों में| घुमे खग भी दिखे उड़ते निकल अपनी पनाओ से बुला सब को सुनाये गीत मनभावन इशारों में| भरी प्यारी […]

गीतिका/ग़ज़ल

माँ

माँ माँ की ममता ही यहाँ भगवान है माँ की ममता पर खुदा कुर्बान है | माँ तपन में छाँव पीपल की घनी माँ उजाला ज़िंदगी का मान है | माँ के चरणो में समायी श्रष्टि है माँ कि ममता ने किया धनवान है ऋण चुकाया जा नहीं सकता कभी – शक्सियत ऐसी निराली शान […]

गीतिका/ग़ज़ल

दोहा गीतिका – बौरा गए रसाल

होली तो हो ली सखे,फूले किंशुक लाल। पाटल महके झूमकर,बौरा गए रसाल।। कोकिल कूके बाग में, कुहू-कुहू की टेर, चोली कसती जा रही, मन में उठे सवाल। बाली जौ गोधूम की, नाच रही नित झूम, पीपल दल के होंठ पर,उभरा लाल गुलाल। फूल-फूल का रस चखे,तितली नीली पीत, भँवरे गूँजें मत्त हो, करते विकट धमाल। […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

चलो सब साथ में मिलकर | बढ़ो सब साथ में मिलकर || बड़ा प्यारा मिला जीवन | हँसो सब साथ में मिलकर || किसी दुखियार की पीड़ा | सुनो सब साथ में मिलकर || बनाया ईश ने हमको | रहो सब साथ में मिलकर || भला कुछ काम जग खातिर | करो सब साथ में […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बढ़े हर कदम ने तेरे, मुझे हर पल सँवारा है उसी ने ही सुनो प्यारा, नसीब ये सुधारा है बहारों के नज़ारे सुन सदा ही तो रहे भाते समय कितना मिला जो साथ मिल हमने गुज़ारा है बने हम तो हुये है एक – दूजे के लिए ही हम उधर तुमने इधर से तो, हमीं […]

गीतिका/ग़ज़ल

दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे

सजने सँवरने की ज़रूरत ही क्या है दिखावा नही तो ये और क्या है कई तीर तरकस में रख कर चलना जुल्फ़े लहराने की जरूरत ही क्या है लुटेरों उच्चकों से भरी है ये दुनियां शरीफों की सुनती कहाँ है ये दुनियां दौलत छुपाना जरूरी यहाँ पे तिज़ारत दिखाने की ज़रूरत ही क्या है सरे […]

गीतिका/ग़ज़ल

भूकंप

अगर भूकंप आएगा बदल देगा कहानी को न देखेगा बुढ़ापे को ना बचपन और जवानी को इमारत और भवन बहु मंजिलें ढह जाएंगे सारे बचे कुछ खंडहर से घर बतायेंगे वीरानी को गिरेंगे भरभरा कर पुल सुनामी साथ गर आई नहीं रोका गया है आज तक इस बहते पानी को लिए परमाणु बम बैठे बहुत […]

गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

आदमी आदमी को खाता है ।और फिर अश्क भी बहाता है। आग है सिर्फ पेट की इसके, जहां भर को मगर जलाता है। झूठ दुनिया के याद रखता है,मौत के सच को भूल जाता है। अंत में साथ में कुछ नही जाता,उम्र भर सिर्फ यह जुटाता है। जबकि सोना है हमेशा के लिए,नींद औरों की […]

गीतिका/ग़ज़ल

वो इंसान कैसा था

याद कर वो बचपन गाँव का  कच्चा मकान कैसा था, दिल से सब ही अमीर थे, पास किसके कोई  पैसा था, गांव के बड़े बुज़ुर्ग चौपालों रहते थे बतियाते अकसर, सर्दियों में जहां मिलकर थे तापते वो अलाव कैसा था, ईद आई कि दिवाली आई,हां चहरों की मुस्कान बढ़ी, इक दुजे को जो बांटते फ़िरते […]

गीतिका/ग़ज़ल

निंदक नियारे राखिए

बाज़ारवाद के माहौल में बिकती है हर चीज सही! क्या निर्जीव, क्या सजीव सभी के मोल लगते हैं सही! मान-मर्यादा की नीलामी में कुर्क हो गए जज़्बात सभी! सोसल मीडिया के दर्पण में अपने पराए के बिगड़ गए हैं समीकरण सभी! अहंकार का पुलिंदा लिए हर कोई भटकता रहता है सही! मानवता के मूल्यों को […]