कल और आज
कल और आज जी रहा यंत्रवत जीवन को , दो पल सुकून के ढूंढ रहा | अनजान अजनबी सा मानव
Read Moreप्रसन्नता की प्रतिमा थी वह, या खुशियों का गुलदस्ता, लगी सोचने क्या क्या हो सकता, नाम सुघड़ सुकुमारी का. बड़ी-बड़ी
Read Moreशहर को हुए तो गांव से भी गए, इक पक्की छत की तलाश में पेड़ों की छाँव से भी गए,
Read Moreतुम को देखते ही आती है मुँह पे रौनक तुम्हारे जाते ही दिल मायूश होता हैं तुम पास आती हो
Read Moreएक दिन मेरे दोस्त को, मैं लगा गुमसुम बोला वो, क्या सोच रहे हो तुम बातें बहुत सी हैं सोच
Read Moreकौवा चला हंस की चाल, चुगे दाना मोती। बदल कर अपनी वेशभूषा, पहना कुर्ता धोती।। पहना कुर्ता धोती, अब कोई
Read More