जिन्हें दिल में अब हम बसाने लगे थे वो ही दूर अब हम से जाने लगे थे… जो कहते थे आँखें तेरी हम बनेंगे वही हम से नज़रें चुराने लगे थे… थी उनको जिन भी रकीबों से नफरत उन्हें को वो अपना बताने लगे थे… जिन पर यकीं था खुद से भी […]
गीतिका/ग़ज़ल
ग़ज़ल
जिसके लिए मैंने अपनी हस्ती को मिटा दिया आज उसी ने मुझे जख्म दे दे कर तड़पा दिया अपने हसीं लम्हों को उस पर निसार किया उन्हीं लम्हों को उसने जिंदगी से हटा दिया कर दिया उसे जिंदगी से दरकिनार मैंने एक बेवफा से उम्र भर को पीछा छुड़ा दिया कभी कभी खुद से ही […]
किसकी खातिर
देख कर वफायें उसकी, उसकी वफाओं पे मर गए मांग कर दुआएं मरने कि,ताबीर से मुकर गए| बेबस फिरती थी बेआस मेरी ये आँखें चेहरे दर चेहरे चाँद आया इक शाम गली में, इक चेहरे पे हम ठहर गए| अपने शब-ओ-रोज़ में उसने भी खुदा को पूजा तो बहुत होगा करके इक खता हम,एक चेहरे […]
ग़ज़ल : ये कैसा शहर है…
सन्नाटों में हैं चींखें ,लुट जाने का डर है बताओ तो मेरे दोस्तों ये कैसा शहर है चारों तरफ हाहाकार चारों तरफ चीत्कार है मेरे अधूरे सपनो का ये कैसा नगर है कभी खुशियाँ अपार तो कभी गम के साए ये जिंदगी मेरे यारों बस एक मीठा सा जहर है उम्र गुजर जाएगी मेरी यूँ […]
मेरी माँ ने
मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया भूखी रह के भी, भरे पेट का बहाना बना लिया. सर पे उठा के बोझा जब थक गई थी वो इक घूंट पानी पीके अपना ग़म दबा लिया. दिन सारा कि थी मेहनत पर कुछ नहीं मिला इस दर्द को ही अपना मुकद्दर बना लिया. […]
जब होके आस-पास भी खला होगा
जब होके आस-पास भी खला होगा तभी तो रोने में फिर इक मज़ा होगा. आँखें तेरी देखेंगी जब तड़पता मुझे मैं सोचता हूँ वो कैसा सिलसिला होगा. हो सामने हर वक़्त ऐसी बात नहीं वो अक्स उसका मुझसे है बंधा होगा. चलता तो हूँ पर न पता है राह मुझे सही राह […]
अपनी ही अंजुमन में…
अपनी ही अंजुमन में मैं अंजाना सा लगूं बिता हुआ इस दुनिया में फ़साना सा लगूं. गाया है मुझको सबने, सबने भुला दिया ऐसा ही इक गुजरा हुआ तराना सा लगूं. अपने ही हमनशीनों ने भुला दिया मुझे तो कैसे अब मैं गैरों को खजाना सा लगूं. कई बार डूबा हूँ वहां […]
सबकी ऐसे गुजर गयी
हिन्दू देखे, मुस्लिम देखे, इन्सां देख नहीं पाया मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, आते जाते उमर गयी अपना अपना राग लिये सब अपने अपने घेरे में हर इन्सां की एक कहानी, सबकी ऐसे गुजर गयी अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे इक कोने में माँ दुबकी थी, जब मेरी वहाँ नजर गयी […]
रंग बदलती दुनिया देखी
सपनीली दुनिया मेँ यारो सपने खूब मचलते देखे रंग बदलती दुनिया देखी , खुद को रंग बदलते देखा सुविधाभोगी को तो मैंने एक जगह पर जमते देख़ा भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैंने चलते देखा देखा हर मौसम में मैंने अपने बच्चों को कठिनाई में मैंने टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा, पलते देखा पैसों की […]
कंक्रीटों के जंगल
इन कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनाते हैं ना ही रोशनी आये ना खुशबु ही बिखर पाये हालात देखकर घर की पक्षी भी लजाते हैं दीवारेँ ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं […]