स्वच्छता के दोहे
बिखरी हो जब गंदगी, तब विकास अवरुध्द घट जाती संपन्नता, बरकत होती क्रुध्द वे मानुष तो मूर्ख हैं, करें शौच
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Read Moreमाथे का चंदन बनी, दुर्भावों की धूल। पीपल आरोपित हुए, पूजित हुए बबूल।। जाने कैसा हो गया, माली का व्यवहार।
Read More1 युग युग से ‘मैं’ कर रही , नित्य देह का दान काश कभी मन-भाव को, भी मिलती पहचान .
Read Moreदिलों में प्रेम की गंगा बहाने आ रही होली. सभी शिकवे गिलों को दूर करने आ रही होली. धरा से
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