कविता :माँ
वात्सल्य से बड़ा प्रेम नहीं अपत्यस्नेह-सा दूजा कुछ नहीं मातृ रुधिर से बनती संतान कितना पवित्र स्तनपान। संतान के लिए
Read Moreवात्सल्य से बड़ा प्रेम नहीं अपत्यस्नेह-सा दूजा कुछ नहीं मातृ रुधिर से बनती संतान कितना पवित्र स्तनपान। संतान के लिए
Read Moreलौट के तो आ गए कदमपर साँसें वही गई है थम।यादों की गठरी को चुन लीजीवन में अब कैसा है
Read Moreपानी की बून्द ने सागर से कहा मुझे जाना होगा छोड़ना होगा तेरा साथ चंद रोज़ की बात है फिर
Read Moreसरकार इस तरह से तो अब हमको रुसवा न करो, मुहब्बत खेल नहीं है, तुम कोई तमाशा न करो, ज़माने
Read Moreऐ मेरे लोकतंत्र तेरा इश्क़ भी कितना अत्याचार करता है.. कभी जात के नाम पर तो कभी रंग के साथ
Read Moreतू वो लिख जिसे लिखने में लोग संकोच करते हैं जो तेरा दिल कहे तू बस वही लिख तुझे किसका
Read Moreतुम्हारे भोग जितने कम होंगे दुःख, कष्ट व परेशानियां उतनी ही कम होंगी । अपने धर्म के रास्ते पर चलकर
Read Moreमंदिर मस्जिद चर्च गुरूद्वारेनदिया परबत जंगल सारेढूँढ ढूँढ़ थक हार गया मैंकहीं मिले ना मोहन प्यारे |तभी अचानक एक बूढ़े
Read Moreमैं मूर्तिकार,अपनी कृतियों मेंभावों को संजोता हूंँ lमिट्टी और रंगों के संगम सेनवकृति को जन्म मैं देता हूंँ lएक दिन
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