-1- देश प्रेम को जगा न जाति भेद में मलीन। रंच मात्र राग द्वेष के न हो कभी अधीन।। पेट पालते हुए बनें न ढोर कीर मीन। जाग! जाग!!जीव मूढ़ चेत हो बनें प्रवीन।। -2- देह को न रंग मीत रंग चित्त का सु- गेह। गेह हाड़ माँस में न लीन हो बने विदेह।। शेष […]
कुण्डली/छंद
कुण्डलिया छंद
चोरी नैनों से करे, लूटे मन का चैन। जब तब पलके मूंद कर, दिन को कर दे रैन ।। दिन को कर दे रैन , पिया की है छवि प्यारी । मनमोहे मनमीत, और मैं मन से हारी ।। कहे साधना बात , प्रीत की है जो डोरी। बाँधे तोड़े आज, हृदय की कर के […]
अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस
योग से निरोग बने,बने रहें स्वस्थ सब, सबको ही योग का, प्रण लेना चाहिए । भारत जनक है, योग की परंपरा का, विश्व नमन करे, अब सीख लेनी चाहिए । योग अपना के लाभ पा रहा जहां,…… भारत का भी हर घर स्वस्थ होना चाहिए । सबको ही योग का, प्रण लेना चाहिए । भोग […]
प्रभुवंदना की कुंडलियाँ
(1) अंतर में शुचिता पले,तो हो प्रभु का भान। वरना मानव मूर्ख है,कर ले निज अवसान।। कर ले निज अवसान,विधाता को नहिं जाने। चिंतन का उत्थान,तभी विधि को पहचाने।। सच का हो संसार,यही सद्गति का मंतर। सपने हों साकार,चेतना है यदि अंतर।। (2) खिलता है जीवन तभी,जब है उर निष्पाप। कर्म अगर होते बुरे,तो जीवन […]
प्रेम के सवैया
जब प्रेम दिखा तब रूप सजा,जब रूप सजा तब प्रेम महान। मन है चहका,दिल है बहका,जब दे नित ही कुछ तो अवदान। अनुमान नहीं कुछ प्रेमसुरा,कितनी महिमा गरिमा पहचान। जब रात सजे,कुछ बात बढ़े,महके चहके झलके मतिमान।। सहगान सुमंगल प्रीत लिये,अनुगीत लिये नवगीत कमान। झनकार बहार सुहावन है,मन भोर सुप्रीति रचे सुखखान।। नित भान पले […]
दस घनाक्षरियाँ मनहरण
1. राणा प्रतापऔर उनके वीर ~~~~~~~~~~~~~~~~ शौर्य के प्रचण्ड पिण्ड कहो मारतण्ड चण्ड, तोड़ दिग्गजों की तुण्ड ठण्ड झेलने लगे । मुगलों की बगलों में दबे हुए बगुलों को, चुगलों ने छेड़ा तो घमण्ड ठेलने लगे। जीतने के जोश में न बैरियों को होश रहा , वीरता की भूमि पै ही दण्ड पेलने लगे । […]
मतलब
मतलब तो कुछ और है ,कहते हैं कुछ और,उनकी हर इक बात पर,करना होगा गौर .करना होगा गौर ,बने है चतुर सयाने ,अपनी बातें कहें ,दूसरों की ना मानें ,कहते गोलमगोल ,दिखाते हरदम करतब,बोलें जब खलिहान ,खेत होता है मतलब। — महेंद्र कुमार वर्मा
पंचरंगी कुंडलिया
-1- करके चोरी ‘विज्ञ’जन , बाँट रहे नित ज्ञान। स्वयं नहीं करते कभी,ऐसे विज्ञ महान।। ऐसे विज्ञ महान, ज्ञान की बहती गंगा। बनी हुई नद – नाल, बाँटने वाला नंगा।। ‘शुभम् सुनामी तेज,पहाड़ों से जल गिरके। करते स्वर आक्रांत ,ज्ञान की चोरी करके।। -2- पढ़ते थे पहले कभी,गुटखा ध्यान लगाय। अब गुटखा खाने लगे, दाँतों […]
छंद
राम के नाम से नेह लगा हमको सजनी कछु और न भावै, देह न गेह न अन्न न नीर त मोर हियो किस भांति अघावै। हाथ लिए तुलसी की सुमिरनी देह मेरी आकुल उठ धावै, कौन सो मारग पंचवटी तक मो कउ कौन जो राह दिखावै।। राम दरबार ही में राम गुणगान कर, राम की […]
छंद
1 सिहों से दहाड़ कर चढ़े जो पहाड़ पर आए बैरी मारकर उनको सलाम है । कारगिल जीतकर शत्रु भयभीत कर आए हैं जो वीरवर उनको सलाम है ।। मिट गए हंसकर नीचे मातृभूमि पर मुड़ के न आए घर उनको सलाम है । देश की संभाल को देकर अपने लाल को जी रहे जो […]