कुण्डली/छंद

कुण्डली/छंद

वन गमन (तंत्री छंद)

जनक दुलारी, हे सुकुमारी,कैसे तुम,वन को जाओगी।पंथ कटीले,अहि जहरीले,कैसे तुम,रैन बिताओगी।।सुन प्रिय सीते, हे मनमीते,आप वहाँ,रह ना पाओगी।विटप सघन है,दुलभ

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कुण्डली/छंद

तीन कुण्डलिया छंद

(1) मसिजीवी हैं जो श्रमिक,उनको नम्र प्रणाम। दूर करें अड़चन सभी,उनकी प्रभु श्रीराम।। उनकी प्रभु श्रीराम,कीर्ति फैलायें जग में। लेखन

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