राही चलता चल
कुछ भी नहीं है कल ओ राही सब कुछ है इसी पल लक्ष्यहीन मत बन राही संकल्पों पर कर अमल
Read Moreकुछ भी नहीं है कल ओ राही सब कुछ है इसी पल लक्ष्यहीन मत बन राही संकल्पों पर कर अमल
Read Moreधर काली का रोंद्र रुप, अंग्रेजों का संहार किया ! मातृभूमि की रक्षा हेतु, दुर्गा का अवतार लिया ! !
Read Moreझुलसा चेहरा, धंसी आँखें, “एसिड विक्टिम”… है मेरी पहचान ! पलक बिछाये, था सुनहरा कल, अब शायद हूँ… कुछ दिन
Read Moreहंगामा है क्यूँ मचाया बस नोट ही बंद हुयी है सोयी थी सियासत कल तक अब बाँह चढ़ाये अड़े हैं
Read Moreभारत के धर्म – ज्ञान का प्रकाश ले चले हैं । धर्म वाली संसद पहुँचने की चाह है ।। कल
Read Moreजिसकी खुशबू साँसों में घुल गई है वो गुलाब है, मुझको भूल गयी है। ज़रा याद दिलाए उसे कोई मेरी
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